Wednesday, March 30, 2011

Ghazal..


हाय! आते ही ये जाने का बहाना तेरा
"ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा"

जब भी बादल मेरे चहरे पे छिड़कता बूँदें
याद आ जाता है बालों का सुखाना तेरा

तू अदाएं नहीं रखती न अना* फिर कैसे
मुझपे लग जाए है अक्सर ही निशाना तेरा
[अना -- Ego]

क्या कयामत भी हसीं होती है? ..हाँ होती है!
जैसे नज़रों को मिलाकर के हटाना तेरा !

तू वफ़ा दीन कि बातें न किया कर सबसे
है नया वक़्त पुराना है ज़माना तेरा

वस्ल* में भी है लिए 'लम्स' गमे फुरक़त* को
देख! सदमे में है कितना ये दिवाना तेरा..!!
[वस्ल -- Meeting With The Lover]
[गमे फुरक़त -- The Sorrow of Separation
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5 comments:

रश्मि प्रभा... said...

हाय! आते ही ये जाने का बहाना तेरा
"ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा"
waah

Kunwar Kusumesh said...

achchhi gazal.

नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .

'साहिल' said...

क्या कयामत भी हसीं होती है? ..हाँ होती है!
जैसे नज़रों को मिलाकर के हटाना तेरा !

waah! waah! kaatil sher, umda ghazal

Lams said...

Aab sabka shukriya :)

Anonymous said...

Bahut achi hai............