Thursday, May 1, 2025

वो गुज़रे दिन

भरी दोपहर छिप-छुपा कर निकलना

वो जामुन के पेड़ों पे चढ़ना उतरना

कि कैंची के ढंग में ही साइकिल चलाना

कभी यूँ ही मम्मी के आँचल में सोना

बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन!


मुझे अपने हातों से खाना खिलाना

खिलाते हुए कोई क़िस्सा सुनाना

मिरे रूठ जाने पे मुझको मनाना

मेरी माँ का मेरा हर इक नाज़ उठाना

बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन!


बहारों के मौसम में नज़रों का मिलना,

उमीदों के गुलशन में फूलों का खिलना,

किसी भी बहाने कोई बात करना,

वो पहली मोहब्बत का एहसास होना,

बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन!

Thursday, April 10, 2025

ग़ज़ल- पुराने दर्द का मलबा

पुराने दर्द का मलबा हटाने जाने लगे,

किसी के दिल में नया घर बनाने जाने लगे,


मैं तेरे साथ कदम दो कदम जो चल निकला,

तो मुझको छोड़ के कितने ही शाने जाने लगे,


जवां दिलों को जलाने का ये हुनर, हैरत,

तिरे शिकार तो परवाने माने जाने लगे,


तुझे बसा के यहाँ, मुझसे हो गई ग़लती,

कि शह्र-ए-दिल से सभी जाने माने जाने लगे,


नई बहार के नौ-खेज़ ख़्वाब आए हैं,

सो अहल-ए-शौक़ उन्हें आज़माने जाने लगे,


किए हैं बंद तिरे बाद दिल के सब रस्ते,

यहाँ से जाने कौन, कौन-जाने जाने लगे,


गली गली को ख़बर है कि उस गली से ‘लम्स’,

किसी की याद मिटाने तुम आने जाने लगे।

Tuesday, April 1, 2025

Draft Version!

हमारी लव स्टोरी कुछ अलग है!

झगड़ना छोटी छोटी बातों पर हमेशा,

हमेशा ये दिखाना कि,

हमें परवाह नहीं है,

हमें परवाह नहीं एक दूसरे की,

मगर करना….

इसी कोशिश में रहना रात दिन कि…

रखें खुश कैसे हम इक दूसरे को,

बिना ऐसा दिखाये,

कि हम इन कोशिशों में मुबतिला हैं!


हमारी ये कहानी draft version है अभी तक,

मगर ये ठीक भी है,

कहानी जो मुकम्मल हो चुकी हो,

उसे फिर ठीक कर पाएँ,

ये गुंजाइश नहीं रहती!


हमारी ये कहानी draft version है अभी तक,

हमेशा ये कहानी draft version ही रहेगी…


हमारी लव स्टोरी कुछ अलग है!

Saturday, March 29, 2025

खुशियाँ



पेड़ पर चढ़कर जामुन तोड़ना,

मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारना,
दोपहर की धूप में खेलना,
प्यास लगने पर…
किसी भी नल से पानी पी लेना,
एक रुपए में छह टॉफीस पाकर ख़ुश हो जाना,
वो सौंफ के पैकेट में किसी हीरो का नेगेटिव निकलना,
इमली के गोले ख़रीद कर, मम्मी से छुप कर खाना,  
साइकिल पर ट्यूशन जाना…
और हाइट न होने की वजह से उसे कैंची स्टाइल में चलना।

मैं इन यादों को टटोलता हूँ,
और ख़ुशी ढूंढ लेता हूँ।

और आप?

Monday, March 11, 2013

Shaam-e-Nau


wo ik haseen shaam-e-nau, kab aayi kab guzar gayi
wo jaane kis nagar ki thi, na jaane kis dagar gayi

tamaam guftagu ke baad bhi ye dil bhara nahin
wo jis kadar taweel thi wo utni mukhtasar gayi

mujhe laga main rok lun, ki haal-e-dil suna sakun
ye soch kar chhuaa use to daf'atan bifar gayi

shafaq ke rang bhar uthe zabeeN pe aagayi latein
chalo ye maana wo hui khafa magar nikhar gayi

wo ik nigaah-e-aakhiri wo ankahi si daastaaN
na jaane kitne dard the jo naam mere kar gayi

chali gayi, ruki nahin, main rokta hi rah gaya,
siyaahiyon mein ghul ghula ke sab taraf bikhar gayi

charaagh-e-zindagi ka ab, bayaan-e-gham mein kya karun
jo shamma ik jalaayi thi wo teeragi pe mar gayi
-----------------------------------------------------------------------------
वो इक हसीन शाम-ए-नौ, कब आई कब गुज़र गयी,
वो जाने किस नगर की थी, न जाने किस डगर गयी,

तमाम गुफ्तुगू के बाद भी ये दिल भरा नहीं,
वो जिस कदर तवील थी, वो उतनी मुख़्तसर गयी 

मुझे लगा मैं रोक लूँ कि हाल-ए-दिल सुना सकूँ,
ये सोच कर छुआ उसे तो दफ'अतन बिफर गयी,

शफ़क़ के रंग भर उठे, ज़बीं पे आ गयीं लटें,
चलो ये माना वो हुई खफा मगर निखर गयी,

वो इक निगाह ए आखिरी, वो अनकही सी दास्ताँ,
न जाने कितने दर्द थे जो नाम मेरे कर गयी,

चली गयी, रुकी नहीं, मैं रोकता ही रह गया,
सियाहियों में घुल घुला के सब तरफ बिखर गयी,

चिराग़-ए-ज़िन्दगी का अब, बयान-ए-ग़म मैं क्या करूँ,
जो शम्मा इक जलाई थी वो तीरगी पे मर गयी।

--------------------------------------------------

'Lams'

Tuesday, April 12, 2011

Ek Nazm..


सुना है पानी की इक खासियत है
कि उसमे डूबना पहले पहल
मुमकिन नहीं होता
वो हर डूबी हुई चीज़ों को ऊपर फेंकता है

कभी हम तुम भी फुरक़त* के
समंदर में हुए थे गर्क*

वो बीता वक़्त वो लम्हें
जो हम संग लेके डूबे थे
बड़े भारी थे जाना

और हमको जिस्म प्यारा था !

तो उनको छोड़कर
हम फिर से लौटे हैं सतह पर
और इस दुनिया में वापस आगये हैं
सभी से मिल रहे हैं
रो रहे हैं
हंस रहे हैं
मगर इक फर्क दिखने लग गया है...

कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
.........................................................
 [फुरक़त -- Parting, Separation]; [गर्क -- Drown]
...........................................................

Tuesday, November 30, 2010

वादे..!!


मैंने सुना है
अकेले में तुम अब भी रोती हो..
क्या तुम्हे दुःख है कि तुमने वादे तोड़े?
सुनो..
वादे तब टूटते हैं
जब प्यार मे किये जाएँ |
और
प्यार तो मैंने किया था

तुमने तो बस गलती की थी..!!
........................................

Thursday, November 18, 2010

विलोम..!!


खिलखिला कर तुम्हारा हँसना
और फिर कहना
"तुम मुझे बिलकुल पसंद नहीं"
और मैं मंद बुद्धि
हैरान परेशान यही कहता
कभी "हाँ" कभी "ना"
तुम्हारे जवाब
मुझे कभी समझ नहीं आते
फिर तुम धीरे से कहती

"कभी कभी विलोम शब्दों
के अर्थ भी एक हुआ करते हैं!!"

आज
इस रात
जब मैं अकेला बैठा हूँ
तो झिंगुरो कि आवाजों के बीच
सुनाई दे रही है
तुम्हारी वही हंसी..वही शब्द..वही बात..
पर अर्थ अब स्पष्ट है

मैं आज अकेला बैठा हूँ
पर अकेला हूँ नहीं
तुम वहाँ सबके साथ हो
पर शायद ...अकेले..!!

कभी कभी विलोम परिस्थितियों में भी
स्थितियां एक हुआ करती हैं..!!
..................................................................
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.

Saturday, February 6, 2010

I-4 / आई-४


घर के बरामदे मे लगे हुए
टाट के पर्दों से
छन कर आती हुई
मेरे बचपन की धूप..!!

और बरामदे से जुड़ता हुआ
वो शैतान आगन,
एक बात नही सुनता था
माँ के सोते ही
कड़ी धूप में
बचपन भुनाने निकल पड़ता..!!

उस आगन मे पिछली तरफ,
बल खाता हुआ कचनार का पेड़,
आगन की शैतानियों में
बराबर का हिस्सेदार,
न जाने कितनी चोटों के निशाँ
उसकी शैतानियों की गवाही
आज भी देते हैं..!!

कचनार के दूसरी तरफ,
एक बूड़ा चुगलखोर दरवाज़ा,
जिसपर इतने प्लास्टर
चढ़ चुके थे..की
हाथ लगाते ही चिल्लाने लगता..

और माँ जाग जातीं..!!

उस दरवाज़े के पीछे
छोटी छोटी मासूम क्यारियाँ
जहाँ न जाने कितनी
दोपहर बो रखीं हैं मैने..!!

उनकी बाईं ओर..
एक मदमस्त लॉन
जिसपर बारीकी से
देखने पर पता चलता था
की उसपर
कुछ ज़िंदगी के निशान बाकी हैं..
शायद
क्रिकेट की दीवानगी ने
उसे ऐसा बना डाला था..!!

और उस लॉन का रखवाला..
वो बूड़ा पीपल,
जिसपर इल्ज़ाम था,
की एक दिन वह
उस घर को गिरा देगा
जिसके साथ
वह बरसों से रहता आया है,
कुछ हुक्मरानो के आदेश भी आए थे..
...
सुना है उनके हुक्म की
तामील हो चुकी है..!!
.
पीपल के सामने से होते हुए
मेरे घर का दरवाज़ा आता था..
जिसके अंदर जाते ही
एक छोटा सा गलियारा,
और उसमे रखा एक
सुस्त टेलिफोन
जो हर आने जाने वालों को
सुस्त निगाहों से देखकर
फिर आँखें मूंद लेता..!!

उस छोटे से गलियारे के दूसरी तरफ,
एक और दरवाज़ा
जिसके पार
वही टाट का परदा
वही आगन
वही कचनार का पेड़..

बस फ़र्क़ इतना है,
की यह सब
अब मुझे नही पहचानते..!!
.............................

Saturday, September 12, 2009

लम्हे..!!


जीवन मे कुछ भी पलट कर नहीं आता,
जो गुज़र चुका है वो गुज़र गया,

एक तुम...
जिसके जीवन मे
सरसों के फूलों की महक है..
और एक मैं...
जो हथेली पर
सरसों जमाने की कोशिश मे लगा हूँ,

तुम्हारे लिए
वक़्त गुज़र रहा है
मेरे लिए
लम्हे ठहरे हुए हैं..!!