Wednesday, March 30, 2011

Ghazal..


हाय! आते ही ये जाने का बहाना तेरा
"ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा"

जब भी बादल मेरे चहरे पे छिड़कता बूँदें
याद आ जाता है बालों का सुखाना तेरा

तू अदाएं नहीं रखती न अना* फिर कैसे
मुझपे लग जाए है अक्सर ही निशाना तेरा
[अना -- Ego]

क्या कयामत भी हसीं होती है? ..हाँ होती है!
जैसे नज़रों को मिलाकर के हटाना तेरा !

तू वफ़ा दीन कि बातें न किया कर सबसे
है नया वक़्त पुराना है ज़माना तेरा

वस्ल* में भी है लिए 'लम्स' गमे फुरक़त* को
देख! सदमे में है कितना ये दिवाना तेरा..!!
[वस्ल -- Meeting With The Lover]
[गमे फुरक़त -- The Sorrow of Separation
.............................................
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.

Monday, March 21, 2011

Faislah..


वो फैसला तुम्हे याद है?
वो बा-हमी* फैसला..
की हम नहीं मिलेंगे अब !

वो बा-हमी फैसला
कि सोच कि हदें रहें
जब दोस्तों से बात हो
तो मौज़ू* मुख्तलिफ* रहें
और उनके दायरे में तब
न तुम रहो न मैं रहूँ |

वो फैसला तुम्हे याद है?

वो बा-हमी फैसला
की गर कभी कहीं किसी
भी दोस्त के निकाह में
यूँ मान लो हम मिल गए
तो किस तरह मिलेंगे हम |
न तुम नज़र चुराओगी
न  मैं नज़र बचाऊंगा
पर इतना मान रखेंगे
हाँ हम ये ध्यान रखेंगे
कि गुफ्तुगू न हो सके
फिर आरज़ू न हो सके |

और दिल फरेब दिल-सिताँ
ये सोच कर मता ए जाँ
मेरे तुम्हारे दरमियाँ
हमारे मान के लिए
अक्लो ईमान के लिए
तब इक बहाना हायल* हो
और इस बहाने के लिए
अब इक बहाना और है
की फैसला हमारा था !

वो फैसला तुम्हे याद है??

वो बाहमी फैसला
वो आहनी फैसला
वो आखिरी फैसला
हाँ हाँ वही फैसला
जिस पर रज़ामंदी मेरी
बिन मांगे तुमको मिल गयी..!!
.................................
बा-हमी -- Mutual
मौज़ू-- Topic
मुख्तलिफ -- Different
हायल -- Obstacle
....................................
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.

Saturday, March 5, 2011

ग़ज़ल..


अब नयी दिल में आरज़ू होगी
जिससे हर रोज़ गुफ्तुगू होगी

फिर से परवाने को जीना होगा
फिर से शम्मा की जुस्तुजू होगी

वो कोई और है जो तू अब है
वो कोई और है जो तू होगी

दिल जो टूटा था उसके क्या मानी
मुझ में जीने की आरज़ू होगी

फिर कोई तुझसा दिख गया मुझको
फिर से ग़ज़लों में तू ही तू होगी  

'लम्स' क्या शक्ल है उदासी की
वो तो हमशक्ल-ए-आरज़ू होगी?
............................................................
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.