वो सारी सिलवटें जो सांस लेती थीं
जो जिंदा थीं
कभी मेरे लिए..
जो आँखों के किनारे बैठ जातीं
हंसा करती थी जब तुम
ज़बीं पर जो तुम्हारे रक्स करतीं
तुम्हारे रूठने पर
तुम्हारी हर पसंद और ना पसंद का
कभी इज़हार करती थीं
तुम्हारी नाक पर..
कभी आँखों के पर्दों में
तुम्हारा डर छुपातीं
वो सारी सिलवटें..
वो सारी सिलवटें जो सांस लेती थीं
जो जिंदा थीं
कभी मेरे लिए..
मेरे माज़ी ...
मैं उनकी लाशें अब
किसी बिस्तर पे अक्सर देखता हूँ..!!
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ज़बीं -- Forehead
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This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.
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