सुना है पानी की इक खासियत है
कि उसमे डूबना पहले पहल
मुमकिन नहीं होता
वो हर डूबी हुई चीज़ों को ऊपर फेंकता है
कभी हम तुम भी फुरक़त* के
समंदर में हुए थे गर्क*
वो बीता वक़्त वो लम्हें
जो हम संग लेके डूबे थे
बड़े भारी थे जाना
और हमको जिस्म प्यारा था !
तो उनको छोड़कर
हम फिर से लौटे हैं सतह पर
और इस दुनिया में वापस आगये हैं
सभी से मिल रहे हैं
रो रहे हैं
हंस रहे हैं
मगर इक फर्क दिखने लग गया है...
कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
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[फुरक़त -- Parting, Separation]; [गर्क -- Drown]...........................................................