Monday, August 29, 2011

सिलवटें..


वो सारी सिलवटें जो सांस लेती थीं
जो जिंदा थीं
कभी मेरे लिए..

जो आँखों के किनारे बैठ जातीं
हंसा करती थी जब तुम

ज़बीं पर जो तुम्हारे रक्स करतीं
तुम्हारे रूठने पर

तुम्हारी हर पसंद और ना पसंद का
कभी इज़हार करती थीं
तुम्हारी नाक पर..

कभी आँखों के पर्दों में
तुम्हारा डर छुपातीं

वो सारी सिलवटें..

वो सारी सिलवटें जो सांस लेती थीं
जो जिंदा थीं
कभी मेरे लिए..

मेरे माज़ी ...

मैं उनकी लाशें अब
किसी बिस्तर पे अक्सर देखता हूँ..!!
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ज़बीं -- Forehead
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Thursday, April 14, 2011

Mujhse Naaraaz Ho [Movie Song]

I just love this song from the movie "Papa Kahte Hain". It has touched the very core of my heart... so just thought of sharing it on my blog...



मुझसे नाराज़ हो तो हो जाओ
खुद से लेकिन खफा खफा न रहो
मुझसे तुम दूर जाओ तो जाओ
आप अपने से तुम जुदा न रहो

मुझसे नाराज़ हो.....

मुझपे चाहें यकीं करो न करो
तुमको खुद पर मगर यकीन रहे
सर पे हो आसमान या कि न हो
पैर के नीचे ये ज़मीन रहे
मुझको तुम बेवफा कहो तो कहो
तुम मगर खुद से बेवफा न रहो

मुझसे नाराज़ हो.....

आओ इक बात मैं कहूँ तुमसे
जाने फिर कोई ये कहे न कहे
तुमको अपनी तलाश करनी है
हमसफ़र कोई भी रहे न रहे
तुमको अपने सहारे जीना है
ढूँढती कोई आसरा न रहो

मुझसे नाराज़ हो तो हो जाओ
खुद से लेकिन खफा खफा न रहो
मुझसे तुम दूर जाओ तो जाओ
आप अपने से तुम जुदा न रहो..!!
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                      --Javed Akhtar

Tuesday, April 12, 2011

Ek Nazm..


सुना है पानी की इक खासियत है
कि उसमे डूबना पहले पहल
मुमकिन नहीं होता
वो हर डूबी हुई चीज़ों को ऊपर फेंकता है

कभी हम तुम भी फुरक़त* के
समंदर में हुए थे गर्क*

वो बीता वक़्त वो लम्हें
जो हम संग लेके डूबे थे
बड़े भारी थे जाना

और हमको जिस्म प्यारा था !

तो उनको छोड़कर
हम फिर से लौटे हैं सतह पर
और इस दुनिया में वापस आगये हैं
सभी से मिल रहे हैं
रो रहे हैं
हंस रहे हैं
मगर इक फर्क दिखने लग गया है...

कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
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 [फुरक़त -- Parting, Separation]; [गर्क -- Drown]
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Wednesday, March 30, 2011

Ghazal..


हाय! आते ही ये जाने का बहाना तेरा
"ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा"

जब भी बादल मेरे चहरे पे छिड़कता बूँदें
याद आ जाता है बालों का सुखाना तेरा

तू अदाएं नहीं रखती न अना* फिर कैसे
मुझपे लग जाए है अक्सर ही निशाना तेरा
[अना -- Ego]

क्या कयामत भी हसीं होती है? ..हाँ होती है!
जैसे नज़रों को मिलाकर के हटाना तेरा !

तू वफ़ा दीन कि बातें न किया कर सबसे
है नया वक़्त पुराना है ज़माना तेरा

वस्ल* में भी है लिए 'लम्स' गमे फुरक़त* को
देख! सदमे में है कितना ये दिवाना तेरा..!!
[वस्ल -- Meeting With The Lover]
[गमे फुरक़त -- The Sorrow of Separation
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Monday, March 21, 2011

Faislah..


वो फैसला तुम्हे याद है?
वो बा-हमी* फैसला..
की हम नहीं मिलेंगे अब !

वो बा-हमी फैसला
कि सोच कि हदें रहें
जब दोस्तों से बात हो
तो मौज़ू* मुख्तलिफ* रहें
और उनके दायरे में तब
न तुम रहो न मैं रहूँ |

वो फैसला तुम्हे याद है?

वो बा-हमी फैसला
की गर कभी कहीं किसी
भी दोस्त के निकाह में
यूँ मान लो हम मिल गए
तो किस तरह मिलेंगे हम |
न तुम नज़र चुराओगी
न  मैं नज़र बचाऊंगा
पर इतना मान रखेंगे
हाँ हम ये ध्यान रखेंगे
कि गुफ्तुगू न हो सके
फिर आरज़ू न हो सके |

और दिल फरेब दिल-सिताँ
ये सोच कर मता ए जाँ
मेरे तुम्हारे दरमियाँ
हमारे मान के लिए
अक्लो ईमान के लिए
तब इक बहाना हायल* हो
और इस बहाने के लिए
अब इक बहाना और है
की फैसला हमारा था !

वो फैसला तुम्हे याद है??

वो बाहमी फैसला
वो आहनी फैसला
वो आखिरी फैसला
हाँ हाँ वही फैसला
जिस पर रज़ामंदी मेरी
बिन मांगे तुमको मिल गयी..!!
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बा-हमी -- Mutual
मौज़ू-- Topic
मुख्तलिफ -- Different
हायल -- Obstacle
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Saturday, March 5, 2011

ग़ज़ल..


अब नयी दिल में आरज़ू होगी
जिससे हर रोज़ गुफ्तुगू होगी

फिर से परवाने को जीना होगा
फिर से शम्मा की जुस्तुजू होगी

वो कोई और है जो तू अब है
वो कोई और है जो तू होगी

दिल जो टूटा था उसके क्या मानी
मुझ में जीने की आरज़ू होगी

फिर कोई तुझसा दिख गया मुझको
फिर से ग़ज़लों में तू ही तू होगी  

'लम्स' क्या शक्ल है उदासी की
वो तो हमशक्ल-ए-आरज़ू होगी?
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