Monday, March 11, 2013

Shaam-e-Nau


wo ik haseen shaam-e-nau, kab aayi kab guzar gayi
wo jaane kis nagar ki thi, na jaane kis dagar gayi

tamaam guftagu ke baad bhi ye dil bhara nahin
wo jis kadar taweel thi wo utni mukhtasar gayi

mujhe laga main rok lun, ki haal-e-dil suna sakun
ye soch kar chhuaa use to daf'atan bifar gayi

shafaq ke rang bhar uthe zabeeN pe aagayi latein
chalo ye maana wo hui khafa magar nikhar gayi

wo ik nigaah-e-aakhiri wo ankahi si daastaaN
na jaane kitne dard the jo naam mere kar gayi

chali gayi, ruki nahin, main rokta hi rah gaya,
siyaahiyon mein ghul ghula ke sab taraf bikhar gayi

charaagh-e-zindagi ka ab, bayaan-e-gham mein kya karun
jo shamma ik jalaayi thi wo teeragi pe mar gayi
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वो इक हसीन शाम-ए-नौ, कब आई कब गुज़र गयी,
वो जाने किस नगर की थी, न जाने किस डगर गयी,

तमाम गुफ्तुगू के बाद भी ये दिल भरा नहीं,
वो जिस कदर तवील थी, वो उतनी मुख़्तसर गयी 

मुझे लगा मैं रोक लूँ कि हाल-ए-दिल सुना सकूँ,
ये सोच कर छुआ उसे तो दफ'अतन बिफर गयी,

शफ़क़ के रंग भर उठे, ज़बीं पे आ गयीं लटें,
चलो ये माना वो हुई खफा मगर निखर गयी,

वो इक निगाह ए आखिरी, वो अनकही सी दास्ताँ,
न जाने कितने दर्द थे जो नाम मेरे कर गयी,

चली गयी, रुकी नहीं, मैं रोकता ही रह गया,
सियाहियों में घुल घुला के सब तरफ बिखर गयी,

चिराग़-ए-ज़िन्दगी का अब, बयान-ए-ग़म मैं क्या करूँ,
जो शम्मा इक जलाई थी वो तीरगी पे मर गयी।

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'Lams'

Wednesday, July 11, 2012

Ghazal



Agar zindagi mujhse naashaad hogi
to ye hi mere fan ki bunyaad hogi

kahaan jaayegi? tere dar pe ya jannat?
meri rooh jab mujhse aazaad hogi

yehi soch kar apna dil toR dala
na basti basegi na barbaad hogi

tabassum labon par rahega humesha
puraanii dabi jismein faryaad hogi

mere gham pe koi kahaani likhe to
humaari mohabbat ki roodaad hogi


na paisa, na sapne, na mazhab, na jhagde
'ye dunya mohabbat se aabaad hogi'
 
miraa 'lams' tere badan pe rahega
sahaare se jiske meri yaad hogi..!!
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अगर ज़िन्दगी मुझसे नाशाद होगी
तो ये ही मेरे फन की बुन्याद होगी

कहाँ जाएगी? तेरे दर पे या जन्नत?
मेरी रूह जब मुझसे आज़ाद होगी

ये ही सोच कर अपना दिल तोड़ डाला
न बस्ती बसेगी, न बर्बाद होगी

तबस्सुम लबों पर रहेगा हमेशा
पुरानी दबी जिसमे फरयाद होगी

मेरे गम पे कोई कहानी लिखे तो
हमारी मोहब्बत की रूदाद होगी

न पैसा, न सपने, न मज़हब, न झगड़े
ये दुनिया मोहब्बत से आबाद होगी

मिरा 'लम्स' तेरे बदन पर रहेगा
सहारे से जिसके मेरी याद होगी..!!

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Monday, August 29, 2011

सिलवटें..


वो सारी सिलवटें जो सांस लेती थीं
जो जिंदा थीं
कभी मेरे लिए..

जो आँखों के किनारे बैठ जातीं
हंसा करती थी जब तुम

ज़बीं पर जो तुम्हारे रक्स करतीं
तुम्हारे रूठने पर

तुम्हारी हर पसंद और ना पसंद का
कभी इज़हार करती थीं
तुम्हारी नाक पर..

कभी आँखों के पर्दों में
तुम्हारा डर छुपातीं

वो सारी सिलवटें..

वो सारी सिलवटें जो सांस लेती थीं
जो जिंदा थीं
कभी मेरे लिए..

मेरे माज़ी ...

मैं उनकी लाशें अब
किसी बिस्तर पे अक्सर देखता हूँ..!!
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ज़बीं -- Forehead
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Thursday, April 14, 2011

Mujhse Naaraaz Ho [Movie Song]

I just love this song from the movie "Papa Kahte Hain". It has touched the very core of my heart... so just thought of sharing it on my blog...



मुझसे नाराज़ हो तो हो जाओ
खुद से लेकिन खफा खफा न रहो
मुझसे तुम दूर जाओ तो जाओ
आप अपने से तुम जुदा न रहो

मुझसे नाराज़ हो.....

मुझपे चाहें यकीं करो न करो
तुमको खुद पर मगर यकीन रहे
सर पे हो आसमान या कि न हो
पैर के नीचे ये ज़मीन रहे
मुझको तुम बेवफा कहो तो कहो
तुम मगर खुद से बेवफा न रहो

मुझसे नाराज़ हो.....

आओ इक बात मैं कहूँ तुमसे
जाने फिर कोई ये कहे न कहे
तुमको अपनी तलाश करनी है
हमसफ़र कोई भी रहे न रहे
तुमको अपने सहारे जीना है
ढूँढती कोई आसरा न रहो

मुझसे नाराज़ हो तो हो जाओ
खुद से लेकिन खफा खफा न रहो
मुझसे तुम दूर जाओ तो जाओ
आप अपने से तुम जुदा न रहो..!!
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                      --Javed Akhtar

Tuesday, April 12, 2011

Ek Nazm..


सुना है पानी की इक खासियत है
कि उसमे डूबना पहले पहल
मुमकिन नहीं होता
वो हर डूबी हुई चीज़ों को ऊपर फेंकता है

कभी हम तुम भी फुरक़त* के
समंदर में हुए थे गर्क*

वो बीता वक़्त वो लम्हें
जो हम संग लेके डूबे थे
बड़े भारी थे जाना

और हमको जिस्म प्यारा था !

तो उनको छोड़कर
हम फिर से लौटे हैं सतह पर
और इस दुनिया में वापस आगये हैं
सभी से मिल रहे हैं
रो रहे हैं
हंस रहे हैं
मगर इक फर्क दिखने लग गया है...

कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
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 [फुरक़त -- Parting, Separation]; [गर्क -- Drown]
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Wednesday, March 30, 2011

Ghazal..


हाय! आते ही ये जाने का बहाना तेरा
"ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा"

जब भी बादल मेरे चहरे पे छिड़कता बूँदें
याद आ जाता है बालों का सुखाना तेरा

तू अदाएं नहीं रखती न अना* फिर कैसे
मुझपे लग जाए है अक्सर ही निशाना तेरा
[अना -- Ego]

क्या कयामत भी हसीं होती है? ..हाँ होती है!
जैसे नज़रों को मिलाकर के हटाना तेरा !

तू वफ़ा दीन कि बातें न किया कर सबसे
है नया वक़्त पुराना है ज़माना तेरा

वस्ल* में भी है लिए 'लम्स' गमे फुरक़त* को
देख! सदमे में है कितना ये दिवाना तेरा..!!
[वस्ल -- Meeting With The Lover]
[गमे फुरक़त -- The Sorrow of Separation
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Monday, March 21, 2011

Faislah..


वो फैसला तुम्हे याद है?
वो बा-हमी* फैसला..
की हम नहीं मिलेंगे अब !

वो बा-हमी फैसला
कि सोच कि हदें रहें
जब दोस्तों से बात हो
तो मौज़ू* मुख्तलिफ* रहें
और उनके दायरे में तब
न तुम रहो न मैं रहूँ |

वो फैसला तुम्हे याद है?

वो बा-हमी फैसला
की गर कभी कहीं किसी
भी दोस्त के निकाह में
यूँ मान लो हम मिल गए
तो किस तरह मिलेंगे हम |
न तुम नज़र चुराओगी
न  मैं नज़र बचाऊंगा
पर इतना मान रखेंगे
हाँ हम ये ध्यान रखेंगे
कि गुफ्तुगू न हो सके
फिर आरज़ू न हो सके |

और दिल फरेब दिल-सिताँ
ये सोच कर मता ए जाँ
मेरे तुम्हारे दरमियाँ
हमारे मान के लिए
अक्लो ईमान के लिए
तब इक बहाना हायल* हो
और इस बहाने के लिए
अब इक बहाना और है
की फैसला हमारा था !

वो फैसला तुम्हे याद है??

वो बाहमी फैसला
वो आहनी फैसला
वो आखिरी फैसला
हाँ हाँ वही फैसला
जिस पर रज़ामंदी मेरी
बिन मांगे तुमको मिल गयी..!!
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बा-हमी -- Mutual
मौज़ू-- Topic
मुख्तलिफ -- Different
हायल -- Obstacle
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Saturday, March 5, 2011

ग़ज़ल..


अब नयी दिल में आरज़ू होगी
जिससे हर रोज़ गुफ्तुगू होगी

फिर से परवाने को जीना होगा
फिर से शम्मा की जुस्तुजू होगी

वो कोई और है जो तू अब है
वो कोई और है जो तू होगी

दिल जो टूटा था उसके क्या मानी
मुझ में जीने की आरज़ू होगी

फिर कोई तुझसा दिख गया मुझको
फिर से ग़ज़लों में तू ही तू होगी  

'लम्स' क्या शक्ल है उदासी की
वो तो हमशक्ल-ए-आरज़ू होगी?
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Saturday, December 18, 2010

26/11 -- शहीदों के नाम..!!


एक औरत ने हाथ जला लिए
एक बच्चा खेलते खेलते गिर पड़ा
दो आदमी आपस में लड़ मरे !!

हर किसी को चोट लगती है
पर उनकी अपनी गलतियों
कि वजह से...

और तुम....
तुमने अपनी जान दे दी !!
वो भी....
किसी और की गलती पर !!!!
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Sunday, December 12, 2010

तस्सव्वुर..!!


क्यूँ मेरी बातों से निकले है छन के तन्हाई
ये मेरा दर्द है, मेरी जलन, की तन्हाई
जो मेरे सामने बैठी है बन के तन्हाई
ये मेरा मन ही है या मेरे मन की तन्हाई..!!

ये बात तरके ताल्लुक के बाद आती है
जो मुझसे मिलती है तो होके शाद आती है
क्या ये बता दूं की जिससे निकाह हुआ मेरा
वो मुझको छूती है तो तेरी याद आती है..!!
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