Saturday, December 18, 2010

26/11 -- शहीदों के नाम..!!


एक औरत ने हाथ जला लिए
एक बच्चा खेलते खेलते गिर पड़ा
दो आदमी आपस में लड़ मरे !!

हर किसी को चोट लगती है
पर उनकी अपनी गलतियों
कि वजह से...

और तुम....
तुमने अपनी जान दे दी !!
वो भी....
किसी और की गलती पर !!!!
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Sunday, December 12, 2010

तस्सव्वुर..!!


क्यूँ मेरी बातों से निकले है छन के तन्हाई
ये मेरा दर्द है, मेरी जलन, की तन्हाई
जो मेरे सामने बैठी है बन के तन्हाई
ये मेरा मन ही है या मेरे मन की तन्हाई..!!

ये बात तरके ताल्लुक के बाद आती है
जो मुझसे मिलती है तो होके शाद आती है
क्या ये बता दूं की जिससे निकाह हुआ मेरा
वो मुझको छूती है तो तेरी याद आती है..!!
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Tuesday, November 30, 2010

वादे..!!


मैंने सुना है
अकेले में तुम अब भी रोती हो..
क्या तुम्हे दुःख है कि तुमने वादे तोड़े?
सुनो..
वादे तब टूटते हैं
जब प्यार मे किये जाएँ |
और
प्यार तो मैंने किया था

तुमने तो बस गलती की थी..!!
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Thursday, November 18, 2010

विलोम..!!


खिलखिला कर तुम्हारा हँसना
और फिर कहना
"तुम मुझे बिलकुल पसंद नहीं"
और मैं मंद बुद्धि
हैरान परेशान यही कहता
कभी "हाँ" कभी "ना"
तुम्हारे जवाब
मुझे कभी समझ नहीं आते
फिर तुम धीरे से कहती

"कभी कभी विलोम शब्दों
के अर्थ भी एक हुआ करते हैं!!"

आज
इस रात
जब मैं अकेला बैठा हूँ
तो झिंगुरो कि आवाजों के बीच
सुनाई दे रही है
तुम्हारी वही हंसी..वही शब्द..वही बात..
पर अर्थ अब स्पष्ट है

मैं आज अकेला बैठा हूँ
पर अकेला हूँ नहीं
तुम वहाँ सबके साथ हो
पर शायद ...अकेले..!!

कभी कभी विलोम परिस्थितियों में भी
स्थितियां एक हुआ करती हैं..!!
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Sunday, July 25, 2010

उसकी निगाह..!! (Geet)


उसके दिल कि थी ज़बां उसकी निगाह उसकी निगाह
मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

इन दिलों के फासले कुछ कम किये जा सकते थे
ज़िन्दगी से छुप के भी कुछ पल जिए जा सकते थे
इक दफा करती जो हाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

जाने वाली हर लहर फिर लौटकर आई नहीं
वो गयी उसकी खबर फिर लौटकर आई नहीं
रह गयी लेकिन यहाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

मंदिरो मस्जिद मे उससे मिलने ही जाता था मैं
इक खुदा के वास्ते काफिर बना जाता था मैं
उन दिनों पाँचों अजाँ, उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

उसको अपने दिल से बढ़कर जाँ समझ बैठा था मैं
था गलत जो उसकी ना को हाँ समझ बैठा था मैं
था गलत वो तर्जुमाँ, उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह..!!
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Thursday, July 1, 2010

एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है..!!


अल्फाज़ बहुत रूठे हुए से बैठे हैं,
सहमे सहमे से अरमाँ भी हैं क्यूंकि,
एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है,

कल शाम एक ख़त पड़ा था झीने में,
जिसमे लिखा था ख्याल रखना मेरे बाबा का,
मेरे भैया को मेरी डाईरी न पढने देना,
छोटी बहना को समझाना कभी न ऐसा करे,

मैं तो नादाँ हूँ मुझे इश्क हुआ है अम्मा,
तू ही कहती थी मेरे जैसी न बनना बेटी....

अल्फाज़ तो अब कत्ल हो गए हैं सभी,
सहमे सहमे जो अरमाँ थे, ज़हर पी बैठे,
एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है..!!
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Monday, June 28, 2010

उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं..!!



उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं

उसके रुखसार पर चाँद का नूर था
उसकी आँखों का काजल था काली घटा
जब मैं लिखने गया तो कुछ एसा हुआ
वो घटायें भी बह चाँद पर आगयीं
ये कलम जो रुकी तो रुकी रह गयी

उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं

वो कोई खाब थी उसकी ताबीर थी
वो हकीकत नहीं थी कोई हूर थी
जब मैं लिखने गया तो कुछ एसा हुआ
वो हकीकत सी बन सामने आगई
ये कलम जो रुकी तो रुकी रह गयी

उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं

संगेमरमर का एहसास कैसे लिखूं
वो मोहब्बत वो इखलास* कैसे लिखूं
उसका होना मेरे पास कैसे लिखूं
अब यही सोच कर मैंने रख दी कलम
हुस्ने जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं..!!
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इखलास -- प्यार
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Monday, June 21, 2010

जो मुझसे हुई है खता-ए-मोहब्बत..!!


जो मुझसे हुई है खता-ए-मोहब्बत,
तो इसमें सज़ा भी सज़ा-ए-मोहब्बत,

है दुनिया मे बस एक दवा-ए-मोहब्बत,
जिसे बोलते हैं दुआ-ए-मोहब्बत,

नज़रबंद कर के मुझे अपने दिल में,
लगा दी गयी है दफा-ए-मोहब्बत,

घरों को जलाने से होगा क्या हासिल,
जलाते नहीं क्यूँ शमा-ए-मोहब्बत,

मैं जी भरके जी लूँ तमन्नाएं सारी,
न जाने की क्या दिन दिखाए मोहब्बत,

वो दौलत ओ शोहरत कि शौकीन है पर,
यहाँ मुफलिसी, बस वफ़ा-ए-मोहब्बत..!!
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Saturday, June 19, 2010

उसे तो बस खुदा जाने !... उसे तो बस खुदा समझे !


न कर परवाह दुनिया की उसे अपना खुदा समझे,
उन आँखों को मदीना और दिल को करबला समझे

भले दुनिया मोहब्बत को हमारी इक खता समझे
भले दुनिया हमें हद से भी ज्यादा सरफिरा समझे,

हसें वो क्या ज़रा सा देख के, हम क्या से क्या समझे
जो होना था ज़रा देरी से उसको हो गया समझे

मगर इस पर भी जब मेरी वफ़ा को वो ज़फ़ा समझे
कोई बतलाये ये दिल उसको किस हद तक बुरा समझे?

हम उनको मुद्द'आ समझे वो हमको मसअला समझे
"हम उनको देखो क्या समझे थे और वो हमको क्या समझे"

जो उसको जानते हैं उनको यह कहते सुना हमने
उसे तो बस खुदा जाने!, उसे तो बस खुदा समझे !

कभी खुद से यहां पर कुछ नहीं समझे, नहीं समझे
वफ़ा पायी.... वफ़ा समझे, ज़फ़ा पायी.... ज़फ़ा समझे

मोहब्बत के उसूलों से न वाकिफ था न वाकिफ है
की मैंने जिस्म जब छोड़ा तो वो मुझको मरा समझे

है दिल ऐसा परिंदा हसरतों की बारिशों में जो
कफस में आसरा पाकर के उसको आसरा समझे..!!
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Friday, May 14, 2010

रोती हुई बहार खिज़ां से गुज़र गयी..!!

.
एक बात यकबयक जो ज़ुबां से गुज़र गयी
उसको लगी कहां पे कहां से गुज़र गयी

वो दूर से भी निकले तो दिल को लगे है ये
गुजरी नहीं वहां से यहां से गुज़र गयी

इंसानियत को आदमी का हाल जब दिखा
सहमी डरी हुई सी, जहां से गुज़र गयी

जब भूख मुफलिसी की ज़बां बोलने लगी
रोती हुई बहार खिज़ां से गुज़र गयी

[खिज़ां -- पतझड़]
 
नज़रें मिलीं तो नज़रें हटा कर गुज़र गया
लेकिन नज़र वो सोज़े-निहां से गुज़र गयी..!!

[सोज़े निहां -- गहरा दबा हुआ दुख]
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Thursday, April 1, 2010

डैनडीलियन..!!


मैं कहता हूँ मुझे दफ्न तुम अभी कर दो
कि ढूँढ कर कोई बंज़र ज़मीं दबा दो मुझे..!!
 
खुद को समेट रक्खा है खुद में मैंने
हवा-ए-दर्द से अब रु-ब-रु होना है मुझे
मुझमे हिम्मत नहीं कि खुद को बाँध कर रखूं

मैं जो बिखरा तो सच कहता हूँ बिखर जाऊंगा
मैं हर इक सिम्त हर एक ओर नज़र आऊंगा
जहाँ भी सब्ज़ ज़मीं होगी ठहर जाऊंगा
हर एक ओर फिर मुझसे ही गम्ज़दे होंगे
ज़रा सी दूर दूर पर ही गमकदे होंगे
अभी तो मैं हूँ! फिर कितने ही बदगुमां होंगे
कभी यहाँ कभी वहाँ, कहाँ-कहाँ होंगे
रोक पाना फिर मुमकिन नहीं होगा मुझको
मैं दूर दूर तक फिर अपने निशाँ छोडूंगा
मैं ग़मज़दा हूँ, मैं कितने दिलों को तोडूंगा
तो बात मान लो मेरी ख़ुशी चखने वालों
ए मालिकों! आकाओं! खैरियत रखने वालों
हवा-ए-दर्द से अब रु-ब-रु होना है मुझे 
मुझमे हिम्मत नहीं कि खुद को बाँध कर रखूं..!!

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Tuesday, March 23, 2010

कश्मीर..!!



सरहदें उस ओर भी इस ओर भी
खस्तगी उस ओर भी इस ओर भी
लड़ रहें हैं अब तलक आवाम दो
इन ज़मीनों को हमारा नाम दो

ऐसी आशुफ्तासरी किस काम की
इन दिमागों पर सलासिल क्यूँ पड़े..

जो तुम्हारे पास है वो तुम रखो
जो हमारे पास है वो हम रखें
इन ज़मीनों के ये झगडे छोड़ कर
अब कना'अत की भी कुछ बातें करें
यह ज़मीनें मिटटी पत्थर होके भी
यह ज़मीनें तख्ते सुल्तां हो गयीं |

इन ज़मीनों पर मरे जितने बशर
जोड़ लो दो गज ज़मीं उन सब कि फिर
अपने अपने लो बना कश्मीर फिर
फिकरे-बेशो-कम को ले झगडा करो
फासले ही फासले हो दरमियाँ
सरहदों पर सरहदें बनती रहें
एक दूजे को डरा के खुश रहें
हसती-ए-मौहूम पे नाज़ाँ करें |

ऐसी आशुफ्तासरी किस काम की
इन दिमागों पर सलासिल क्यूँ पड़े..

यह जिसे राजे सुकूं है कह रहें
दरअसल वो हादसों का खौफ है
कर गए बेबाक वो नज़रे तमाम
जो कभी बुर्के के पीछे हँसतीं थीं
जो कभी घूंघट में शर्मा जाती थीं
देखने भर से ही लर्जां जातीं थीं
फिर मुहाफ़िज़ की पड़ी ऐसी नज़र
झुक गयीं नज़रे तमाम शर्म से
हो गयीं बंज़र तमाम इज्ज़तें |

ऐसी आशुफ्तासरी किस काम की
इन दिमागों पर सलासिल क्यूँ पड़े..

जब मुसलसल हादसे होते गए
खुशबु-ए-बारूद फ़ैली दूर तक
उस जहाँ के लोग भी आने लगे
शिर्कतें औरों की भी बड़ने लगीं
एक क्या चरखो सितारा* कम न थे
जो यकबयक पन्द्रा सितारे* जल उठे!!
हमने भी उनको ये इज्ज़त सौंप दी
करना है जो तुमको कर लो, अबतलक
हम बरहना थे नहीं पर हो गए

आने वाली नस्ल जब ये पूछेगी
चर्ख पे इतने सितारे क्यूँ है अब
चाँद लालो नीला* कैसे हो गया
तब निसाबों मे बताया जाएगा
हाल अबका सब सुनाया जायेगा
तब गुले दियार भी ये बोलेंगे

ऐसी आशुफ्तासरी किस काम की
उन दिमागों पर सलासिल क्यूँ पड़े??

.............
............
*चरखो सितारा -- भारत और पाकिस्तान
*पन्द्रा सितारे - अमरीका
*लालो नीला - लाल और नीला
.........
आशुफ्तासरी, खस्तगी -- पागलपन
सलासिल -- बेड़ियाँ, ज़ंजीर
कना'अत -- संतोष
तख्ते सुल्तां -- बादशाह का सिंहासन
फिकरे-बेशो-कम -- कम ज्यादा की चिंता
हसती-ए-मौहूम -- भ्रममूलक अस्तित्व
नाज़ाँ -- गर्व
लर्जां -- कांपना
मुहाफ़िज़ -- रक्षक
गुले दियार -- देश के फूल
चर्ख -- चक्र
बरहना -- निर्वस्त्र
निसाबों में -- पाठ्यक्रम में

Sunday, February 14, 2010

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों..!!


चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों,

चलो पहली तरह, उस ही जगह पर, फिर से मिलते हैं,
बहाने से किसी हम, और तुम फिर, साथ चलते हैं,
कि जाने पे ये बातों पर सबर हम दोनों रखते हैं,
न हम पलटें, न फिर पलटें और ना मुस्काएं हम दोनों,

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों,

बहुत मासूम चेहरे से शरारत फिर से करना तुम,
कभी आँसू बहाकर के शिकायत मुझसे करना तुम,
कि सोने जाओ जब जाना, इनायत खुद पे करना तुम,
न तुम सोचो न मैं सोचूं न फिर घबराएं हम दोनों,

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों,

कि खुद ही खेल मे तुमसे मेरा यूँ हार जाना फिर,
ख़ुशी से दस्त-ओ-बाजू पे जो मेरे मार जाना फिर,
ये कहकर,क्यूँ किया यह, और मेरे पास आना फिर,
ऐसा कहकर, झुकाकर सर, न फिर शरमायें हम दोनों,

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों,

कभी मेरी कोई बातों पे तेरा टूट कर आना,
कभी यूँ खामखा मेरे, धुएँ पे रूठ कर जाना,
मेरा लड़ना, मेरी बातों, पे तेरा गौर ना करना,
झगड़ कर के, बिगड़ कर के, न फिर हंस जाएँ हम दोनों,

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों,

न मुमकिन हो अगर जानां तो फिर कुछ ऐसा करते हैं
कि इस दुनिया में होकर अजनबी हम दोनों मरते हैं
और उसके बाद सब यादों को लेकर फिर से मिलते हैं..!!

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Saturday, February 6, 2010

I-4 / आई-४


घर के बरामदे मे लगे हुए
टाट के पर्दों से
छन कर आती हुई
मेरे बचपन की धूप..!!

और बरामदे से जुड़ता हुआ
वो शैतान आगन,
एक बात नही सुनता था
माँ के सोते ही
कड़ी धूप में
बचपन भुनाने निकल पढ़ता..!!

उस आगन मे पिछली तरफ,
बल खाता हुआ कचनार का पेड़,
आगन की शैतानियों में
बराबर का हिस्सेदार,
न जाने कितनी चोटों के निशाँ
उसकी शैतानियों की गवाही
आज भी देते हैं..!!

कचनार के दूसरी तरफ,
एक बूड़ा चुगलखोर दरवाज़ा,
जिसपर इतने प्लास्टर
चढ़ चुके थे..की
हाथ लगाते ही चिल्लाने लगता..

और माँ जाग जाती..!!

उस दरवाज़े के पीछे
छोटी छोटी मासूम क्यारियाँ
जहाँ ना जाने कितनी
दोपहर बो रखीं हैं मैने..!!

उनकी बाईं ओर..
एक मदमस्त लॉन
जिसपर बारीकी से
देखने पर पता चलता था
की उसपर
कुछ ज़िंदगी के निशान बाकी हैं..
शायद
क्रिकेट की दीवानगी ने
उसे ऐसा बना डाला था..!!

और उस लॉन का रखवाला..
वो बूड़ा पीपल,
जिसपर इल्ज़ाम था,
की एक दिन वह
उस घर को गिरा देगा
जिसके साथ
वह बरसों से रहता आया है,
कुछ हुक्मरानो के आदेश भी आए थे..
...
सुना है उनके हुक्म की
तामील हो चुकी है..!!
.
पीपल के सामने से होते हुए
मेरे घर का दरवाज़ा आता था..
जिसके अंदर जाते ही
एक छोटा सा गलियारा,
और उसमे रखा एक
सुस्त टेलिफोन
जो हर आने जाने वालों को
सुस्त निगाहों से देखकर
फिर आँखें मूंद लेता..!!

उस छोटे से गलियारे के दूसरी तरफ,
एक और दरवाज़ा
जिसके पार
वही टाट का परदा
वही आगन
वही कचनार का पेड़..

बस फ़र्क़ इतना है,
की यह लोग
अब मुझे नही पहचानते..!!
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Tuesday, January 26, 2010

तेरे होने से..!!



.
खुलूस-ए-नज़र, हसरत-ए-जिगर, तेरे होने से,
रहमत-ए-अदा, है जिंदा बशर, तेरे होने से,

सहरा मे मैं, हूँ सूखा शजर, तू दरिया कोई
हूँ बदहाल पर, लगता है समर, तेरे होने से,

वो एक नीम शब्, बहा डाले थे, सभी खाब फिर,
अब इन आँखों मे, रहती है सहर, तेरे होने से,

सुकूं था जो एक संग सीने मे दबा रखा था
उसमे भी अब, होता है असर, तेरे होने से,

ये एहसान अब, तेरा लम्स पर, रहेगा सदा
फिर परवाज़ है ओ हैं बालो पर तेरे होने से..!!
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Saturday, January 9, 2010

नहीं सिखलाओ बच्चों को..!!


नहीं सिखलाओ बच्चों को
की इस धरती पे जो भगवां है
वो इन्सां मे रहते हैं
वो बच्चे डर से जाते हैं
की जब भी देख लेते हैं
किसी भागवान ने जाकर...

किसी भागवान को मारा..!!
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