Thursday, May 1, 2025

वो गुज़रे दिन

भरी दोपहर छिप-छुपा कर निकलना

वो जामुन के पेड़ों पे चढ़ना उतरना

कि कैंची के ढंग में ही साइकिल चलाना

कभी यूँ ही मम्मी के आँचल में सोना

बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन!


मुझे अपने हातों से खाना खिलाना

खिलाते हुए कोई क़िस्सा सुनाना

मिरे रूठ जाने पे मुझको मनाना

मेरी माँ का मेरा हर इक नाज़ उठाना

बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन!


बहारों के मौसम में नज़रों का मिलना,

उमीदों के गुलशन में फूलों का खिलना,

किसी भी बहाने कोई बात करना,

वो पहली मोहब्बत का एहसास होना,

बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन!