Tuesday, December 9, 2008

वो एक मासूम सी बच्ची... (नज़्म)


वो एक मासूम सी बच्ची...

हाथों में गुब्बारे लिए,
उछल उछल कर चलती हुई,
चेहरे पर मुस्कराहट,
बिखरे हुए बाल,
और सपनो से भरी ऑंखें ।

बड़े रंग बिरंगे थे वो गुब्बारे,
जिसको देखो उसी को देख रहा था,
बच्चे पास आकर हाथ बड़ा देते,
और वो उनके हाथों में गुब्बारे पकड़ा देती,
अपने लिए एक भी नही रखा.....एक भी नही !!!

गुब्बारों के रंग उसको ललचा नही पाए?
या गुब्बारों से उसका मन भर चुका था?
उसका मन नही होता और बच्चों की तरह
वो भी उन्हें हवा में उड़ाए?
बड़ी अजीब लड़की थी वो !

मेरा मन परेशां होगया आज,
कोई जाकर उस बच्ची से वो सारे गुब्बारे,
खरीद कर उसको वापस देदे,
की जा खेल इनसे उड़ा दे सबको हवा में,
दबा कर फोड़ दे...जो करना है कर...

लेकिन.....

वो उन्हें फिरसे बेचेगी.......!!
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Saturday, December 6, 2008

साजिशें ! (नज़्म)

भूल न जाना...
की तू आतिश है,
और....
साजिशें कर रखी हैं
शरारों ने तेरे ख़िलाफ़,
तेरी हर नज़्म हर ग़ज़ल जला देंगे,

सुन यारा.......

ज़रा संभल कर पीना !

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