एक अकेली छतरी मे जब आधे आधे भीग रहे थे आधे सूखे आधे गीले, सूखा तो मैं ले आई थी गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो -- गुलज़ार