Thursday, April 10, 2025

ग़ज़ल- पुराने दर्द का मलबा

पुराने दर्द का मलबा हटाने जाने लगे,

किसी के दिल में नया घर बनाने जाने लगे,


मैं तेरे साथ कदम दो कदम जो चल निकला,

तो मुझको छोड़ के कितने ही शाने जाने लगे,


जवां दिलों को जलाने का ये हुनर, हैरत,

तिरे शिकार तो परवाने माने जाने लगे,


तुझे बसा के यहाँ, मुझसे हो गई ग़लती,

कि शह्र-ए-दिल से सभी जाने माने जाने लगे,


नई बहार के नौ-खेज़ ख़्वाब आए हैं,

सो अहल-ए-शौक़ उन्हें आज़माने जाने लगे,


किए हैं बंद तिरे बाद दिल के सब रस्ते,

यहाँ से जाने कौन, कौन-जाने जाने लगे,


गली गली को ख़बर है कि उस गली से ‘लम्स’,

किसी की याद मिटाने तुम आने जाने लगे।

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