खिलखिला कर तुम्हारा हँसना
और फिर कहना
"तुम मुझे बिलकुल पसंद नहीं"
और मैं मंद बुद्धि
हैरान परेशान यही कहता
कभी "हाँ" कभी "ना"
तुम्हारे जवाब
मुझे कभी समझ नहीं आते
फिर तुम धीरे से कहती
"कभी कभी विलोम शब्दों
के अर्थ भी एक हुआ करते हैं!!"
आज
इस रात
जब मैं अकेला बैठा हूँ
तो झिंगुरो कि आवाजों के बीच
सुनाई दे रही है
तुम्हारी वही हंसी..वही शब्द..वही बात..
पर अर्थ अब स्पष्ट है
मैं आज अकेला बैठा हूँ
पर अकेला हूँ नहीं
तुम वहाँ सबके साथ हो
पर शायद ...अकेले..!!
कभी कभी विलोम परिस्थितियों में भी
स्थितियां एक हुआ करती हैं..!!
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This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.
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5 comments:
beautiful....!!
kahan rehte ho dost...mr gayab?
बेहद खूबसूरत और उम्दा प्रस्तुति।
bahut bahut bahut khoobsurat
बहुत सुन्दर और सराहनीय नज़्म !
waah gaurav,maza aa gaya is kavita ko padhkar.........vilom ka kya maani samjhaya tumne .....bahut achchi lagi ye kavita
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