सुना है पानी की इक खासियत है
कि उसमे डूबना पहले पहल
मुमकिन नहीं होता
वो हर डूबी हुई चीज़ों को ऊपर फेंकता है
कभी हम तुम भी फुरक़त* के
समंदर में हुए थे गर्क*
वो बीता वक़्त वो लम्हें
जो हम संग लेके डूबे थे
बड़े भारी थे जाना
और हमको जिस्म प्यारा था !
तो उनको छोड़कर
हम फिर से लौटे हैं सतह पर
और इस दुनिया में वापस आगये हैं
सभी से मिल रहे हैं
रो रहे हैं
हंस रहे हैं
मगर इक फर्क दिखने लग गया है...
कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
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[फुरक़त -- Parting, Separation]; [गर्क -- Drown]...........................................................
7 comments:
कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
........ gajab ke ehsaas
मुहब्बत का तकाज़ा है कि डूबो और न फिर उभरो ..............
लेकिन गर्क हो जाना हमेशा मुमकिन नहीं होता !
आपकी बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूँ और
इस खूबसूरत नज़्म के लिए दाद पेश करता हूँ !
कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है !!
behad sunder abhivyakti ,
sadhuwad
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
कि जब भी देखता हूँ आईना मैं
तो उसमे मुझको अब फूली हुई इक लाश दिखती है
बहुत सुंदर एहसास...बहुत मार्मिक
Rashmi Didi shukriya pasand karne keliye.
Misir Ji is hausla afzaayi ka bahut bahut shukriya
Sunil ji tah-e-dil se shukriya
Vandana Ji is sammaan ke liye dil se shukriya. Main zaroor aunga.
Veena Ji nazm pasand karne keliye bahut bahut shukriya.
'Lams'
Quite a serious one
Nice.
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