Thursday, April 1, 2010

डैनडीलियन..!!


मैं कहता हूँ मुझे दफ्न तुम अभी कर दो
कि ढूँढ कर कोई बंज़र ज़मीं दबा दो मुझे..!!
 
खुद को समेट रक्खा है खुद में मैंने
हवा-ए-दर्द से अब रु-ब-रु होना है मुझे
मुझमे हिम्मत नहीं कि खुद को बाँध कर रखूं

मैं जो बिखरा तो सच कहता हूँ बिखर जाऊंगा
मैं हर इक सिम्त हर एक ओर नज़र आऊंगा
जहाँ भी सब्ज़ ज़मीं होगी ठहर जाऊंगा
हर एक ओर फिर मुझसे ही गम्ज़दे होंगे
ज़रा सी दूर दूर पर ही गमकदे होंगे
अभी तो मैं हूँ! फिर कितने ही बदगुमां होंगे
कभी यहाँ कभी वहाँ, कहाँ-कहाँ होंगे
रोक पाना फिर मुमकिन नहीं होगा मुझको
मैं दूर दूर तक फिर अपने निशाँ छोडूंगा
मैं ग़मज़दा हूँ, मैं कितने दिलों को तोडूंगा
तो बात मान लो मेरी ख़ुशी चखने वालों
ए मालिकों! आकाओं! खैरियत रखने वालों
हवा-ए-दर्द से अब रु-ब-रु होना है मुझे 
मुझमे हिम्मत नहीं कि खुद को बाँध कर रखूं..!!

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