Sunday, July 25, 2010

उसकी निगाह..!! (Geet)


उसके दिल कि थी ज़बां उसकी निगाह उसकी निगाह
मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

इन दिलों के फासले कुछ कम किये जा सकते थे
ज़िन्दगी से छुप के भी कुछ पल जिए जा सकते थे
इक दफा करती जो हाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

जाने वाली हर लहर फिर लौटकर आई नहीं
वो गयी उसकी खबर फिर लौटकर आई नहीं
रह गयी लेकिन यहाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

मंदिरो मस्जिद मे उससे मिलने ही जाता था मैं
इक खुदा के वास्ते काफिर बना जाता था मैं
उन दिनों पाँचों अजाँ, उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह

उसको अपने दिल से बढ़कर जाँ समझ बैठा था मैं
था गलत जो उसकी ना को हाँ समझ बैठा था मैं
था गलत वो तर्जुमाँ, उसकी निगाह उसकी निगाह

मेरे उसके दरमियाँ उसकी निगाह उसकी निगाह..!!
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Thursday, July 1, 2010

एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है..!!


अल्फाज़ बहुत रूठे हुए से बैठे हैं,
सहमे सहमे से अरमाँ भी हैं क्यूंकि,
एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है,

कल शाम एक ख़त पड़ा था झीने में,
जिसमे लिखा था ख्याल रखना मेरे बाबा का,
मेरे भैया को मेरी डाईरी न पढने देना,
छोटी बहना को समझाना कभी न ऐसा करे,

मैं तो नादाँ हूँ मुझे इश्क हुआ है अम्मा,
तू ही कहती थी मेरे जैसी न बनना बेटी....

अल्फाज़ तो अब कत्ल हो गए हैं सभी,
सहमे सहमे जो अरमाँ थे, ज़हर पी बैठे,
एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है..!!
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