Monday, June 28, 2010

उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं..!!



उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं

उसके रुखसार पर चाँद का नूर था
उसकी आँखों का काजल था काली घटा
जब मैं लिखने गया तो कुछ एसा हुआ
वो घटायें भी बह चाँद पर आगयीं
ये कलम जो रुकी तो रुकी रह गयी

उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं

वो कोई खाब थी उसकी ताबीर थी
वो हकीकत नहीं थी कोई हूर थी
जब मैं लिखने गया तो कुछ एसा हुआ
वो हकीकत सी बन सामने आगई
ये कलम जो रुकी तो रुकी रह गयी

उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं

संगेमरमर का एहसास कैसे लिखूं
वो मोहब्बत वो इखलास* कैसे लिखूं
उसका होना मेरे पास कैसे लिखूं
अब यही सोच कर मैंने रख दी कलम
हुस्ने जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं..!!
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इखलास -- प्यार
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Monday, June 21, 2010

जो मुझसे हुई है खता-ए-मोहब्बत..!!


जो मुझसे हुई है खता-ए-मोहब्बत,
तो इसमें सज़ा भी सज़ा-ए-मोहब्बत,

है दुनिया मे बस एक दवा-ए-मोहब्बत,
जिसे बोलते हैं दुआ-ए-मोहब्बत,

नज़रबंद कर के मुझे अपने दिल में,
लगा दी गयी है दफा-ए-मोहब्बत,

घरों को जलाने से होगा क्या हासिल,
जलाते नहीं क्यूँ शमा-ए-मोहब्बत,

मैं जी भरके जी लूँ तमन्नाएं सारी,
न जाने की क्या दिन दिखाए मोहब्बत,

वो दौलत ओ शोहरत कि शौकीन है पर,
यहाँ मुफलिसी, बस वफ़ा-ए-मोहब्बत..!!
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Saturday, June 19, 2010

उसे तो बस खुदा जाने !... उसे तो बस खुदा समझे !


न कर परवाह दुनिया की उसे अपना खुदा समझे,
उन आँखों को मदीना और दिल को करबला समझे

भले दुनिया मोहब्बत को हमारी इक खता समझे
भले दुनिया हमें हद से भी ज्यादा सरफिरा समझे,

हसें वो क्या ज़रा सा देख के, हम क्या से क्या समझे
जो होना था ज़रा देरी से उसको हो गया समझे

मगर इस पर भी जब मेरी वफ़ा को वो ज़फ़ा समझे
कोई बतलाये ये दिल उसको किस हद तक बुरा समझे?

हम उनको मुद्द'आ समझे वो हमको मसअला समझे
"हम उनको देखो क्या समझे थे और वो हमको क्या समझे"

जो उसको जानते हैं उनको यह कहते सुना हमने
उसे तो बस खुदा जाने!, उसे तो बस खुदा समझे !

कभी खुद से यहां पर कुछ नहीं समझे, नहीं समझे
वफ़ा पायी.... वफ़ा समझे, ज़फ़ा पायी.... ज़फ़ा समझे

मोहब्बत के उसूलों से न वाकिफ था न वाकिफ है
की मैंने जिस्म जब छोड़ा तो वो मुझको मरा समझे

है दिल ऐसा परिंदा हसरतों की बारिशों में जो
कफस में आसरा पाकर के उसको आसरा समझे..!!
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