
बनके ख़ुशी वो आये थे जो मेरे पास में,
धोखा दिया था आये थे गम के लिबास में,
वो घुट रहे थे इस कदर मेरे जेहन में बस,
की गांठ बनके बंध चुके थे मेरी सांस में,
मंजिल पे पांव रख चुका होता मैं अबतलक,
खोया अगर न होता मैं जो दश्त-ऐ-यास* में,
एक शख्स बद-गुमानियों* के घर में जा बसा,
जीता रहा था शख्स वो खौफ-ओ-हिरास* में,
और इस चुभन से पा चुका होता निजाद दिल,
यादें छुपी न होती गर इस दिल की फांस में,
रिश्ता मुकम्मल होगया होता ऐ जान-ऐ-'लम्स',
रखते न गुंजाइश अगर इसकी असास* में.
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dasht-e-yaas -- jungle of despair
bad-ghumaanee -- Suspicion
khauf-o-hiraas -- terror/fear
asaas -- foundation/neev
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