Thursday, March 5, 2009

मेरी राहों पे न चलना की तेरे पैर जल जाए..

मेरी राहों पे न चलना की तेरे पैर जल जाए,
मुझे देखो न प्यार से कहीं ये शहर जल जाए,

नज़र से ही सही पर बातें मुझसे ऐसे ही करना,
जुबां से बोलोगी तो यह न हो की गैर जल जाए,

तेरी इस चांदनी से पड़ गए हैं छाले इस दिल पर,
की छुप जाना ज़रा जल्दी कहीं न सहर जल जाए,

तेरे आने पे ही तो महफिलों में नूर आता है,
कहीं ऐसा न हो चराग तिरे बगैर जल जाए।

5 comments:

रश्मि प्रभा... said...

तेरी इस चांदनी से पड़ गए हैं छाले इस दिल पर,
की छुप जाना ज़रा जल्दी कहीं न सहर जल जाए,
.........
वाह,क्या एहसास हैं !-बहुत ही अच्छी रचना

के सी said...

बहुत सुन्दर ब्लॉग है आपका, ग़ज़ल और नज़्में देखी पसंद आयी, लिखते रहिये आपकी समझ अच्छी है.

अनिल कान्त said...

bahut pyara likha hai aapne

Satish Chandra Satyarthi said...

गौरव जी, ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
बहुत सुन्दर लेखन शाली है आपकी
लिखना जारी रखें
मेरी शुभकामनाएं

दिपाली "आब" said...

bahut khoob..