उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं
उसके रुखसार पर चाँद का नूर था
उसकी आँखों का काजल था काली घटा
जब मैं लिखने गया तो कुछ एसा हुआ
वो घटायें भी बह चाँद पर आगयीं
ये कलम जो रुकी तो रुकी रह गयी
उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं
वो कोई खाब थी उसकी ताबीर थी
वो हकीकत नहीं थी कोई हूर थी
जब मैं लिखने गया तो कुछ एसा हुआ
वो हकीकत सी बन सामने आगई
ये कलम जो रुकी तो रुकी रह गयी
उसके हुस्न ओ अदा पर मैं कैसे लिखूं
संगेमरमर का एहसास कैसे लिखूं
वो मोहब्बत वो इखलास* कैसे लिखूं
उसका होना मेरे पास कैसे लिखूं
अब यही सोच कर मैंने रख दी कलम
हुस्ने जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं..!!
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इखलास -- प्यार
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