Thursday, July 1, 2010

एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है..!!


अल्फाज़ बहुत रूठे हुए से बैठे हैं,
सहमे सहमे से अरमाँ भी हैं क्यूंकि,
एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है,

कल शाम एक ख़त पड़ा था झीने में,
जिसमे लिखा था ख्याल रखना मेरे बाबा का,
मेरे भैया को मेरी डाईरी न पढने देना,
छोटी बहना को समझाना कभी न ऐसा करे,

मैं तो नादाँ हूँ मुझे इश्क हुआ है अम्मा,
तू ही कहती थी मेरे जैसी न बनना बेटी....

अल्फाज़ तो अब कत्ल हो गए हैं सभी,
सहमे सहमे जो अरमाँ थे, ज़हर पी बैठे,
एक उम्मीद बड़ी बे-हया सी निकली है..!!
.........................................................................
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.

4 comments:

सम्वेदना के स्वर said...

क्या बात है! लगता है पड़ोस की बात हो, सुनी सुनाई सी..य कभी अपने साथ घटी हो..

मुकेश कुमार सिन्हा said...

ek bahut achchhi rachna......!!

pyar itna asaan nahi hota, sayad yahi byan karne chah rahe hain....na..)

nimantran: hamare blog pe aane ka

कुलदीप "अंजुम" said...

bahut hi samvedanshil marmik rachna
bahut bahut badhayi gaurav bhai

Din said...

Ye to aapki best nazm hai bhai...ek baar fir padhna bahut achha laga