Sunday, April 12, 2009

मेरी रूह लौटाकर जाना...


तू मेरे जिस्म में रहती है अजनबी बनकर,
जो एक रोज़ हम दोनों ने रूह बदली थी,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना..!!

कुछ नज्म यहाँ बिखरी हैं मेरे कमरे में
पैर पढता है तो दर्द से कराह उठती हैं,
तुम्हारे जैसीं हैं अश्कों को छुपाती ही नहीं..!!

इन दराजों में कुछ बोसे पड़े रखे हैं,
आज देखा ज़रा तो चाँदी के वो निकले सारे,
जिनपे पानी कभी सोने का चड़ा रहता था..!!

आज झटका जो बिस्तर पे पड़ी चादर को,
खनखना के कुछ सपने बिखर गए हैं यहाँ
गुल्लक कभी आँखों की मैंने तोडी थी..!!

दुनिया में मोहब्बत की मैं ठहरा मुफलिस
लेके चलता हूँ बेवफाई के कुछ खोटे सिक्के
जो हकीक़त के बाजारों में खूब चलते हैं..!!

अबकी आओ और यह सामान सब उठा लो अपना,
चंद खुशियों केलिए बेच न डालूं इनको,
तकाजा करते हैं अब खैरियत रखने वाले..!!

दुश्मन नहीं तू कोई आशना* भी नहीं,
बरकत नहीं अब कोई तू आफत भी नहीं,
चाहत नहीं तू कोई ज़रूरत भी नहीं..!!

फिर क्यूँ मैं तुझे साथ लिए फिरता हूँ,
बड़े नादान थे हम, रूहें बदल डाली थीं,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना..!!
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आशना -- दोस्त
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2 comments:

रज़िया "राज़" said...

फिर क्यूँ मैं तुझे साथ लिए फिरता हूँ,
बड़े नादान थे हम, रूहें बदल डाली थीं,
अब जो आओ तो मेरी रूह लौटाकर जाना..!!
बहेतरीन.......गज़ल। वाह!!!

VenuS "ज़ोया" said...

mere dost Gourav ji..............[:)][:)][:)]
mujhe bdiii khushii hui........aaj ptaa nhi kaise kaise surf krte krte yahaan tak aa pahunchi.....by chance..........ab kuch der yahin dera jamegaa............

कुछ नज्म यहाँ बिखरी हैं मेरे कमरे में

पैर पढता है तो दर्द से कराह उठती हैं,

तुम्हारे जैसीं हैं अश्कों को छुपाती ही नहीं..!!

.hmmmmmmmmmmmmmmmm
khoobsuratii shabdon ki agar kahen to shayad.........isi ko kahenge.......
take care