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खुलूस-ए-नज़र, हसरत-ए-जिगर, तेरे होने से,
रहमत-ए-अदा, है जिंदा बशर, तेरे होने से,
सहरा मे मैं, हूँ सूखा शजर, तू दरिया कोई
हूँ बदहाल पर, लगता है समर, तेरे होने से,
वो एक नीम शब्, बहा डाले थे, सभी खाब फिर,
अब इन आँखों मे, रहती है सहर, तेरे होने से,
सुकूं था जो एक संग सीने मे दबा रखा था
उसमे भी अब, होता है असर, तेरे होने से,
ये एहसान अब, तेरा लम्स पर, रहेगा सदा
फिर परवाज़ है ओ हैं बालो पर तेरे होने से..!!
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खुलूस-ए-नज़र, हसरत-ए-जिगर, तेरे होने से,
रहमत-ए-अदा, है जिंदा बशर, तेरे होने से,
सहरा मे मैं, हूँ सूखा शजर, तू दरिया कोई
हूँ बदहाल पर, लगता है समर, तेरे होने से,
वो एक नीम शब्, बहा डाले थे, सभी खाब फिर,
अब इन आँखों मे, रहती है सहर, तेरे होने से,
सुकूं था जो एक संग सीने मे दबा रखा था
उसमे भी अब, होता है असर, तेरे होने से,
ये एहसान अब, तेरा लम्स पर, रहेगा सदा
फिर परवाज़ है ओ हैं बालो पर तेरे होने से..!!
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5 comments:
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
behtreen rachaa,,,
bahut hi shaandaar....
भावनाओं की खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
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