जो मुझसे हुई है खता-ए-मोहब्बत,
तो इसमें सज़ा भी सज़ा-ए-मोहब्बत,
है दुनिया मे बस एक दवा-ए-मोहब्बत,
जिसे बोलते हैं दुआ-ए-मोहब्बत,
नज़रबंद कर के मुझे अपने दिल में,
लगा दी गयी है दफा-ए-मोहब्बत,
घरों को जलाने से होगा क्या हासिल,
जलाते नहीं क्यूँ शमा-ए-मोहब्बत,
मैं जी भरके जी लूँ तमन्नाएं सारी,
न जाने की क्या दिन दिखाए मोहब्बत,
वो दौलत ओ शोहरत कि शौकीन है पर,
यहाँ मुफलिसी, बस वफ़ा-ए-मोहब्बत..!!
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6 comments:
बहुत बढ़िया/
वाह ,
जो मुझसे हुई है
ख़ता-ए-मुहब्बत,
तो इसकी सजा भी
सजा-ए-मुहब्बत।
बहुत खूबसूरत गज़ल
आपकी जानिब से
वाह्…………एक अलग ही अन्दाज़ मे बहुत ही सुन्दर गज़ल्।
Lajabab, umda......:)
excellent very nice
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