उफक आज खाली खाली सा है,
फलक बैठा है रूठा सा,की ज़मीन अपने गावों गई है ।
पर जाते जाते कुछ बे-बुनियाद वादे किए हैं,
सोचेगी नही उन बूदों को जो गिरती थी फलक से,
भिगो देता था वो चंद अल्फाज़ गिरा कर,
खुश रहेगी वहां हसी के गुबार उड़ा कर ।
मुस्कुराएगी लेह लहाते खेतों की तरह,
बोएगी कुछ, खुशियों के लम्हात काटेगी,
की हर झरने को चश्म से अब दूर रखेगी,
आफत को हर कीमत पर बेनूर रखेगी ।
दिनों ने भी कुछ पल काटे इंतज़ार में,
फलक और सांझ खोये हैं आफताब की बातों में,
बाद-ऐ-सबा लिए शबनम एक पैगाम लायी है,
एक लम्हा जीकर ज़मीन वापस आई है
देखा उसे तो वादों के परखचे उड़ गए,
सूख गई है न शबनम है न बूदें हैं फलक की,
आँखों के नीचे काले काले साए मंडराते हैं,
कांपते होठों में कुछ उलझी सी गांठे हैं
आँखों में लिए अश्क फलक देखता ही रह गया,
रोम रोम टूटता है फलक के जिस्म का,
आँसू बहाए सांझ, घुल रही है फलक पे,
कुछ और भी रंग आज दिख रहें हैं शफक के
जुदाई की दरारों से भर गई है ज़मीन आज,
आँखों में आबला से रेगिस्तान के टीले हैं,
रोई है जार-जार वो फलक से यूँ लिपट कर,
आगई हो बाहों में पुरी कायनात सिमट कर
उफक अब घर जा चुका है,
फलक की गोद में ज़मीन लेती है सुकून से,
इन्हे अकेला छोड़ अब हम भी चलते हैं
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1 comments:
zameen laut aayi hai....
khush hai....
ufaq se mil ke...
shafaq fir se laal laa hai..
khushnuman sa hai
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