Saturday, December 6, 2008

ज़ब्त-ऐ-ग़म

जलती आँखों ने यह तो बता ही दिया,
की अश्कों में भी अंगारे छुपे होते हैं,

किसी ठोकर से तेरी याद चली आती है,
ठोकरों में भी सहारे छुपे होते हैं,

दाग चाँद के दिन में भी नज़र आते हैं,
खुशनसीब हैं जो तारे छुपे होते हैं,

लडखडाती दुनिया मुझे जलील निगाहों से न देख,
की क़दमों में भी इशारे छुपे होते हैं,

खांसता हूँ तो कुछ लम्हे छलक पड़ते हैं,
जो मेरे खून में बेचारे छुपे होते हैं,

चेहरे पर यह झूटी हसी जो रखता हूँ,
दर्द इसमे कुछ करारे छुपे होते हैं,

अब मेरे जाने के बाद ही फुर्सत से बातें होंगी,
खामोशी में लफ्ज़ बहुत सारे छुपे होते हैं,

पता चला जब ज़ब्त-ऐ-ग़म ने मुझे बीमार किया,
घर की दीवारों में भी नजारे छुपे होते हैं

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