Sunday, December 14, 2008

मेरी डायरी... (नज़्म)


स्याही की दो बूँद चबा कर,
काग़ज़ ने अंगड़ाई ली,
की आज डायरी बड़े दिनो बाद खोली थी....

कुछ पन्ने पलटे उंगलियों से..
वक़्त की दीवार के पीछे झाँका
तो देखा
कुछ ग़ज़ले ऊंघ रही थी

जिन्हे तेरे जाने के बाद
मैने यहाँ पर रख छोड़ा था
पड़ता था ..
सहलाता था और खुश रखता था.

हिम्मत करके कुछ पन्नो को फिर से पलटा
सोचा देखूं जब तुझको लिखता रहता था,
वैसी ही हो या बदल गयी हो.

अब तक तो कितने ही जाले
उन ग़ज़लों पर बैठे होंगे
उनपर छोड़े थे जो चश्मे
सूखे होंगे ... खाली होंगे.

पर आँखों के सामने जो मंज़र आया
काँप गया मैं!!

तुझपर लिखी सारी ग़ज़ले सारी नज़मे
गुज़र चुकी थी...
बदहवासी में पन्ने पलटे जहाँ तहाँ लाशें ही लाशें

पर वो तुझपर लिखी पहली ग़ज़ल,
अपनी आख़िरी सासों में,
मेरी राह देख रही थी.
अशार से वो जा चुकी थी
बस मखते मे ज़िंदा थी.
उस पीले काग़ज़ पर उसको रखकर
आँखों पर उसके हाथ फेर कर
मखते से नाम हटा लिया
उसे जाने दिया.
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आज मेरी डायरी...
मेरी यादों की क़ब्रगाह है..!!
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