Friday, January 2, 2009

तन्हाई..!! (नज़्म)

तरस गया हूँ आफताब* केलिए,
की ज़ौ* बरसे तो
यादों से भीगे मेरे
ज़हन को कुछ आराम आए.

तन्हाइयों के बादलों ने
सालों से डेरा जमा रखा है,
और बरसते रहते हैं,
बेमौसम...

इनसे निजाद पाने की उमीद,
अब तुमसे है,

....

की तुम आओ तो थोड़ी हवा चले..!!

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*आफताब = सूरज
*ज़ौ = सूरज की किरने